
कवर्धा। छत्तीसगढ़ में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर जबरदस्त चुनावी हलचल मची हुई है। प्रदेश की दोनों राष्ट्रीय पार्टियां—बीजेपी और कांग्रेस—ने अपने अधिकृत प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है और प्रचार अभियान चरम पर पहुंच चुका है।
लेकिन कबीरधाम जिले के जिला पंचायत क्षेत्र क्रमांक 11 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के कार्यकर्ता असमंजस में फंसे हुए हैं। दरअसल, बीजेपी ने इस सीट पर किसी को भी अधिकृत प्रत्याशी घोषित नहीं किया, जिससे पार्टी के दो प्रमुख नेता—दिनेश चंद्रवंशी और वीरेंद्र साहू—निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में आमने-सामने हैं।
बीजेपी ने क्यों नहीं घोषित किया प्रत्याशी?
कबीरधाम जिले में जिला पंचायत की 14 सीटों में से 13 पर बीजेपी ने अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं, लेकिन क्षेत्र क्रमांक 11 पर अब तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई।
सूत्रों के मुताबिक, इस सीट पर टिकट को लेकर कई कार्यकर्ताओं ने दावेदारी पेश की थी।
पार्टी की ओर से कई दौर की बातचीत और मंथन के बावजूद कोई सर्वसम्मति नहीं बन पाई।
अंततः बीजेपी ने किसी को अधिकृत उम्मीदवार नहीं बनाया और यह सीट खाली छोड़ दी।
बीजेपी के दो चर्चित चेहरे आमने-सामने

चूंकि बीजेपी ने अधिकृत प्रत्याशी घोषित नहीं किया, इसलिए पार्टी के दो सक्रिय नेता—दिनेश चंद्रवंशी और वीरेंद्र साहू—ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल कर दिया।
दिनेश चंद्रवंशी: बीजेपी का झंडा और चुनाव चिन्ह लेकर जोर-शोर से प्रचार में जुटे हैं।
वीरेंद्र साहू: वह भी पार्टी के झंडे के साथ प्रचार कर रहे हैं और बीजेपी समर्थकों से वोट मांग रहे हैं।
दोनों ही उम्मीदवारों के समर्थक बीजेपी का लोगो लेकर प्रचार कर रहे हैं, जिससे मतदाताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच भारी भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
बीजेपी कार्यकर्ताओं में उलझन, मतदाता भी असमंजस में
पार्टी कार्यकर्ताओं और मतदाताओं में इस बात को लेकर कंफ्यूजन बढ़ गया है कि वे किसे वोट दें।
बीजेपी का झंडा दोनों के प्रचार में लहरा रहा है।
दोनों ही उम्मीदवार पार्टी के पुराने और लोकप्रिय चेहरे हैं।
चुनाव के बाद इनमें से किसी एक को बीजेपी का समर्थन मिलने की चर्चा भी तेज है।
बीजेपी कार्यकर्ताओं का कहना है कि “हम सभी पार्टी के निष्ठावान समर्थक हैं, लेकिन जब दो बीजेपी नेता ही आमने-सामने हों, तो फैसला करना मुश्किल हो जाता है कि किसका समर्थन करें।”
क्या चुनाव के बाद बीजेपी करेगी फैसला?
सूत्रों की मानें तो बीजेपी ने यह रणनीति अपनाई है कि जो भी इस सीट से जीतकर आएगा, उसे पार्टी में शामिल कर लिया जाएगा।
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या यह रणनीति बीजेपी को फायदा पहुंचाएगी या कार्यकर्ताओं में असंतोष बढ़ाएगी?
क्या चुनाव के बाद हारने वाले उम्मीदवार और उनके समर्थकों में नाराजगी होगी?
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि 17 फरवरी को मतदाता किसे अपना समर्थन देते हैं और क्या बीजेपी की यह रणनीति सफल होती है या नहीं।